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ऐ इंसान, तू क्यों करता है अभिमान।
ऐ इंसान, तू क्यों करता है अभिमान।
जो तुझमें है वो मुझमें भी,
और जो मुझमें है वही तुझमें भी।
जाने क्यों तू समझता नही ,
हम सब हैं एक समान ।
ऐ इंसान, तू क्यों करता है अभिमान।।
क्यों करता है अभिमान ।।
दिखावा करते हो, और कहते हो,
हम है एक समान।
पर देखा तुझे करीब से,
तब समझ में आया ।
बगल में छुरी, मुंह में राम ,
ऐ इंसान, तू क्यों करता है अभिमान।।
क्यों करता है अभिमान।।
जब तुम्हारे अपने को कष्ट हुआ,
तो निकल गया तुम्हारे प्राण।
अब तो समझ मुरख मानव,
दूसरों को कष्ट देकर कहां मिलेगा सम्मान।
कितना बदल गया रे इंसान,
तू क्यों करता है अभिमान।
क्यों करता है अभिमान, क्यों करता है अभिमान ।।
👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
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