वट सावित्री व्रत पूजा सामग्री विधि और कथा जाने कैसे करें

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वट सावित्री व्रत पूजा सामग्री विधि और कथा

वट सावित्री व्रत का महत्व
वट सावित्री व्रत, जिसे सावित्री अमावस्या या वट अमावस्या भी कहा जाता है,  हिंदू धर्म  में  महत्वपूर्ण  व्रतों  में  से  एक  है।  यह  व्रत  हर  साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। 
इस वर्ष  2024 में 21 जून 2024 को मनाया जाएगा ।
इस  व्रत  का बहुत महत्व है जो  निम्नलिखित  प्रकार  है-
1. पतिव्रता धर्म का प्रतीक
यह  व्रत  पतिव्रता सावित्री  के  अटूट  प्रेम,  त्याग  और  साहस  का  प्रतीक  है।  सावित्री  ने  अपने  पति  की  मृत्यु  के  बाद  भी  उन्हें  जीवित  वापस  लाने  के  लिए  यमराज  से  लड़ाई  की  थी।
इस  व्रत  को  करने  वाली  महिलाएं  भी  अपने  पति  के  प्रति  अपने  प्रेम  और  समर्पण  का  प्रदर्शन  करती  हैं  और  उनकी  दीर्घायु  की  कामना  करती  हैं।
2. पति-पत्नी के बीच प्रेम
यह  माना  जाता  है  कि  यह  व्रत  पति-पत्नी  के  बीच  प्रेम  और  बंधन  को  मजबूत  बनाता  है।  व्रत  के  दिन  पति-पत्नी  एक  दूसरे  के  लिए  पूजा  करते  हैं  और  एक  दूसरे  के  प्रति  अपने  प्रेम  का  प्रदर्शन  करते  हैं।
3. सुख-समृद्धि और सौभाग्य
यह  व्रत  सुख-समृद्धि  और  सौभाग्य  प्राप्ति  का  माध्यम  माना  जाता  है।  व्रत  को  करने  वाली  महिलाओं  के  घर  में  सुख-शांति  और  समृद्धि  बनी  रहती  है।
4. नकारात्मक शक्तियों का नाश
यह  माना  जाता  है  कि  यह  व्रत  नकारात्मक  शक्तियों  का  नाश  करता  है  और  ग्रहों  का  दोष  दूर  करता  है।  व्रत  को  करने  वाली  महिलाओं  को  नकारात्मक  विचारों  और  भावनाओं  से  मुक्ति  मिलती  है।
5. मनोकामना पूर्ति
यह  माना  जाता  है  कि  यह  व्रत  मनोकामना  पूर्ति  का  माध्यम  है।  व्रत  को  करने  वाली  महिलाओं  की  मनोकामनाएं  पूरी  होती  हैं  और  उन्हें  संतान  प्राप्ति  में  भी  सहायता  मिलती  है।
इस  प्रकार  वट  सावित्री  व्रत  का  महत्व  धार्मिक  और  सामाजिक  दोनों  दृष्टियों  से  बड़ा  है।  यह  व्रत  न  केवल  महिलाओं  के  लिए  बल्कि  पूरे  परिवार  के  लिए  कल्याणकारी  माना  जाता  है।
वट सावित्री व्रत का इतिहास
वट सावित्री व्रत, जिसे सावित्री अमावस्या या वट अमावस्या भी कहा जाता है,  हिंदू धर्म  के  प्रमुख  व्रतों  में  से  एक  है।  यह  व्रत  हर  साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। 
इस  व्रत  का  इतिहास  महाभारत  के वनपर्व  में  वर्णित  है।
वट सावित्री व्रत की कथा
वट सावित्री व्रत, जिसे सावित्री अमावस्या या वट अमावस्या भी कहा जाता है,  हिंदू धर्म  के  प्रमुख  व्रतों  में  से  एक  है।  यह  व्रत  हर  साल ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है।
इस  व्रत  की  कथा  महाभारत  के वनपर्व  में  वर्णित  है।
कथा  इस  प्रकार  है
सावित्री  मद्रदेश  के  राजा  अश्वपति  की  पुत्री  थीं।  उन्होंने  सत्यवान  नामक  एक  गरीब  लेकिन  सत्यवादी  युवक  से  विवाह  किया।
विवाह  के  तीन  दिन  बाद  ही  सत्यवान  की  मृत्यु  हो  गई।
पतिव्रता सावित्री  अपने  पति  के  प्रति  अपने  अटूट  प्रेम  और  त्याग  का  परिचय  देते  हुए  यमलोक  चली  गईं  और  यमराज  से  अपने  पति  को  जीवित  वापस  लेने  का  आग्रह  किया।
यमराज  ने  उन्हें  तीन  वर  मांगे।
सावित्री  ने  अपने  पति  के  प्रति  अपने  प्रेम  और  त्याग  का  प्रदर्शन  करते  हुए  पहले  दो  वर  दान  में  दे  दिए।
पहले  वर  में  उन्होंने  अपने  ससुर  को  राज्य  वापस  देने  का  वर  मांगा  और  दूसरे  वर  में  उन्होंने  अपने  भाइयों  को  संतान  प्राप्ति  का  वर  मांगा।
तीसरे  वर  में  उन्होंने  यमराज  से  अपने  पति  को  कुछ  समय  के  लिए  जीवित  रहने  का  वर  मांगा  ताकि  वे  अपने  कर्तव्यों  का  पालन  कर  सकें।
यमराज  ने  सावित्री  के  त्याग  और  पतिव्रता  धर्म  से  प्रभावित  होकर  सत्यवान  को  कुछ  समय  के  लिए  जीवित  कर  दिया।
कुछ  समय  बाद  सत्यवान  की  फिर  से  मृत्यु  हो  गई  और  सावित्री  ने  अपने  पति  के  साथ  चिता  पर  बैठकर  सती  हो  गईं।
इस  प्रकार  सावित्री  ने  अपने  अटूट  प्रेम  और  त्याग  के  बल  पर  अपने  पति  को  यमराज  से  वापस  ले  आया।
यह  व्रत  सावित्री  के  अटूट  प्रेम  और  त्याग  की  याद  में  मनाया  जाता  है।
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