बेखाब रहकर, तुम्हे दिल से पुकारता हूँ ।
देखा नहीं कभी तुम्हे, लेकिन बंद आँखों से तुम्हे ही निहारता हूँ ।।
नहीं जनता तुम हो कहाँ, और ढूंढ़ने निकल पड़ा हूँ ।
कभी मिला नहीं तुमसे, और मिलने रास्ते पर खड़ा हूँ ।।
नज़ारे दुनिया की जहर हो गई है,
इस नाचीज़ को तुझसे मोहब्बत हो गई है ।
जो अक्सर बरसा करती है,
ये आंखे तुम्हे देखने को तरसा करती है ।।
कैसे पहचानू तुम्हे, रंग रूप बता दो ।
कैसा है भेद तुम्हारा, ये भेद बता दो ।।
मैं तुम्हे नहीं, तुम्हारे साथ जीने का पल मांगता हूँ ।
तुम्हारे बागों को नहीं, उसका एक फूल मांगता हूँ ।।
बेखाब रहकर, तुम्हे दिल से पुकारता हूँ ।
देखा नहीं कभी तुम्हे, लेकिन बंद आँखों से तुम्हे ही निहारता हूँ ।।