राजा वीर नरेश को अपने प्रजा को लेकर चिंता उत्तपन्न हो रहा था की मेरे बाद इस सिंहासन पर सही उत्तराधिकारी कौन बैठेगा , जो प्रजा की सेवा भाव से जीवन पर्यन्त सेवा और सुरक्षा करें । राजा वीर नरेश के पुत्र राजकुमार विक्रमादित्य गुणी और शक्तिशाली होने के साथ अपने स्वार्थी और अहंकारी भी थे , सिंहासन में बैठना कम सैर करना ,आखेट, बाहर रहना पसंद करते थे ।
विक्रमादित्य विनम्रता और सहनशीलता की भावना नहीं था , जो कि एक योग्य राजा में जरूरी हैंजिससे राजा परेशान अपने दरबार में सोच में डूबे हुए हैं, तभी मंत्री जी बोले राजन आप व्यर्थ में चिंता ना करें राजकुमार स्वम ही समय के साथ योग्य हो जाएंगे ।
मंत्री मणिशंकर ने कहा हमारे पास एक उपाय हैं जिससे विक्रमादित्य में योग्यता आ सकता हैं , क्यों न हम राजकुमार को छः माह के लिए शासन सौंप दिया जाए जिससे जिम्मेदारियां आ जाएगी ।
राजा ने मंत्री की बात मान कर पुत्र विक्रमादित्य को राजा बना दिया , विक्रमादित्य शुरुवात में सहमत तो नही हुए लेकिन सोचा कि राजा बन जाने के बाद अब कोई उसे रोकेगा नही जो बोलेगा वही होगा किसी के आगे झुकना नही पड़ेगा उनकी अंहकार और चार चांद लग गया,
कुछ दिनो बाद दस सैनिको के साथ शिकार पर गए शिकार करते करते घनघोर जंगल में चले गए अपने राज्य की सीमा पार कर दिए पता ही नई चला अचानक कुछ शेर की दहाड़ सुनाई दिया सभी चौकन्ने हो गए देखते ही देखते उनके सामने तीन शेर आ गए और झपट पड़े ।
आठ सैनिको पर बुरी तरह झपट दिए गंभीर घायल हुए लेकिन किसी भी तरह शेर को मार दिया गया विक्रमादित्य अहंकारी के साथ साथ पराक्रमी भी था शेर को मारने के बाद उनका अहंकार और बढ़ता गया घायल सैनिकों को छोड़कर और आगे बढ़ते गया , कुछ दूर चलते ही लुटेरों के बिछाए हुए जाल में फंस गया और बचे दो सैनिक सहित विक्रमादित्य को बंदी बना लिया गया , उन तीनो को छः दिन तक हा हाथ पैर बांध कर अत्याचार किया गया सातवे दिन उसे बली देने के लिए कबीलो के बीच उपस्थित किया गया ,
कबीले वाले भगवान शंकर की पूजा करते थे , विक्रमदित्य छः दिन में वहां की आव भाव को समझ गया था और अपनी बुद्धि मानी से अपने गले को भगवान शिव की तरह नीला कर लिया था जब उसे बली के लिए ले जाया गया तब गले की नीलेपन को देख सभी चकित हुए और उनके सामने नतमस्तक हो माफी मांगी , जिससे विक्रमादित्य सहित दोनो सैनको का जान बच गया ।
तीनो वहां से निकलकर अपने राज्य जाने के लिए निकल पड़े , रास्ते में विश्राम करते समय झरने के पास से कुछ आवाज सुनाई दिया ।
राजा विक्रमादित्य जाकर देखा तो , राजकुमारी प्रियम्वदा अपने सखियों के साथ स्नान कर रही थी , विक्रमादित्य प्रियम्वदा को देखकर मंत्र मुक्द हो गए झाड़ियों के पीछे उन्हें देखते ही रहे , उनके स्नान के निकलने के बाद राजकुमारी पास के पार्वती मंदिर में पूजा करने गई ।
वाटिका में विक्रमादित्य और प्रियम्वदा का मिलन हुआ दोनो एक दूसरे को देखकर मंत्र मुक्द हुए दोनो ने गंधर्व विवाह का निर्णय लिए और विवाह कर लिए ।प्रसन्नता पूर्वक सुंदर वन वापस लौट आए और प्रजा का राजा वीर नरेश के अनुसार अपना राज्य संभाल लिया ।मंत्री ने राजा को कहा राजन देखिए जो उत्तदंड बालक था आज सभ्य और जिम्मेदार राजा बन गया ।
।।। सिख कोई उत्तदंड, घमंडी ,अंहकारी बालक, को जिम्मेदारी दे दिया जाए तो वह स्वयं ही सुधार जाता हैं ।।
बढ़िया है भईया
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